भारतीय नारी के लिए सिंदूर का महत्व क्यों हैं, सिंदूर से मांग भरने का वैज्ञानिक कारण
Getting your Trinity Audio player ready...
|
सिर्फ पति की लम्बी आयु के लिए ही नहीं इसलिए भी महिलाएं मांग में भरती है सिंदूर, एक चुटकी सिंदूर की उपयोगिता एवं मूल्य … सत्य में एक विवाहिता स्त्री समझ सकती है कि क्योंकि उस चुटकी भर सिंदूर में एक विवाहिता का सम्पूर्ण ब्रह्मांड समाहित होता है। सुहागन के 16 श्रृंगार में से एक सिंदूर उसके अखंड सुहागन होने का प्रतीक है। परन्तु क्या कभी आपने विचार किया है कि आखिर हिंदू महिलाएं सिंदूर क्यों लगाती हैं? हिंदू धर्म में मांग भरना सिर्फ एक परम्परा ही नहीं है, इसके पीछे छिपा एक वैज्ञानिक रहस्य छिपा हुआ है। आदि अनंत काल से चली आ रही इस परम्परा के पीछे पौराणिक एवं वैज्ञानिक दोनों ही कारण है। आइए जानते है कि हिंदू धर्म में सिंदूर का क्या महत्व होता है।
Shop new arrivals
-
Bal Gopal Yellow Sinhasan for Pooja Mandir Krishna Decorative Showpiece
₹199.00 – ₹349.00 -
Beautiful Blue and Pink Color Cotton Summer Night Suit for Laddu Gopal
₹19.00 – ₹89.00 -
Beautiful Blue Color Cotton Summer Night Suit for Laddu Gopal
₹19.00 – ₹89.00 -
Beautiful Light Green Cotton Summer Night Dress for Kanha ji
₹9.00 – ₹69.00 -
Beautiful Purple Color Cotton Summer Night Suit for Laddu Gopal
₹19.00 – ₹89.00
सिंदूर में होता है पारा
सिंदूर में मर्करी यानि पारा होता है जो अकेली ऐसी धातु है जो लिक्विड रूप में पाई जाती है। सिंदूर लगाने से शीतलता मिलती है और दिमाग तनावमुक्त रहता है। सिंदूर विवाह के पश्चात लगाया जाता है क्योंकि ये रक्त संचार के साथ ही यौन क्षमताओं को भी बढ़ाने का भी काम करता है।
पारा प्रभावों से बचाता है
सिंदूर मंगल-सूचक भी होता है। शरीर विज्ञान में भी सिन्दूर का महत्त्व बताया गया है । सिंदूर में पारा जैसी धातु अधिक होने के कारण चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नहीं पड़ती। साथ ही इससे स्त्री के शरीर से निकलने वाली विद्युतीय उत्तेजना को नियंत्रित किया जाता है। मांग में जहां सिंदूर भरा जाता है, वह स्थान ब्रह्मरंध्र और अध्मि नामक मर्म के ठीक ऊपर होता है । सिंदूर मर्म स्थान को बाहरी बुरे प्रभावों से भी बचाता है ।
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार
सामुद्रिक शास्त्र में अभागिनी स्त्री के दोष निवारण के लिए मांग में सिंदूर भरने की सलाह दी गई है। मात्र सिंदूर भर भरने से किसी भी स्त्री के सौन्दर्य में वृद्धि हो जाती है । एक विवाहित स्त्री कितनी भी सजी संवरी क्यों ना हो, सूनी मांग की वजह से उनका सौंदर्य अधुरा सा लगता है। लेकिन मात्र चुटकी भर सिन्दूर उसके सौन्दर्य तथा आभा में कई गुणा वृद्धि कर देता है।
अखंड सौभाग्यवती का
भारतीय पौराणिक कथाओं में लाल रंग के माध्यम से सती और पार्वती की ऊर्जा को व्यक्त किया गया है। सती को हिन्दू समाज में एक आदर्श पत्नी के रूप में माना जाता है। जो अपने पति के खातिर अपने जीवन का त्याग सकती है। हिंदुओं का मानना है कि सिंदूर लगाने से देवी पार्वती ‘अखंड सौभागयवती’ होने का आशीर्वाद देती हैं।
वैज्ञानिक कारण
जब किसी लड़की का विवाह होता हैं तो उस पर विभिन्न प्रकार की जिम्मेदारियों का दबाव एक साथ आता हैं। जिनका प्रभाव सीधा उस लड़की के मस्तिष्क पर पड़ता हैं। इस तनाव के करण ही विवाह के कुछ समय बाद से ही महिला सिर में दर्द, अनिद्रा जैसे अन्य मस्तिष्क से जुड़े रोगों से ग्रस्त रहती हैं। सिंदूर में मिश्रित पारा धातु एक तरल पदार्थ हैं। जो की मस्तिष्क के लिए बहुत ही लाभदायक सिद्ध होता हैं। पारा इन सभी रोगों से महिलाओं को मुक्त रखने में बहुत ही सहायक होता हैं। इसलिए महिलाओं को विवाह होने के बाद अपनी मांग में सिंदूर अवश्य लगाना चाहिए।
माँ लक्ष्मी का प्रतीक होता है सिंदूर
सिंदूर देवी लक्ष्मी के लिए सम्मान का प्रतीक माना जाता है।यह कहा जाता है कि देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर पांच स्थानों पर रहती हैं और उन्हें हिन्दू समाज में सिर पर स्थान दिया गया है। जिसके कराण हम माथे पर कुमकुम लगा कर उन्हें समान देते हैं। देवी लक्ष्मी हमारे परिवार के लिए अच्छा भाग्य और धन लाने में मदद करती हैं। हिन्दू धर्म में नवरात्र और दीवाली जैसे महत्वपूर्ण त्योहारों के दौरान पति के द्वारा अपनी पत्नी की मांग में सिंदूर लगाना शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह उनके एक साथ रहने का प्रतीक होता है और इससे वो काफी लंबे समय तक एक साथ रहते हैं।
यह है पौराणिक कथा..
मान्यता है कि भगवान ने वीरा और धीरा नाम के दो युवक और युवती को बनाया और उनको सुंदरता सबसे अधिक दी गई। धीरा दिखने में बहुत ही सुंदर थी और वीरा तो वीरता कि मिशाल था। भगवान ने इन दोनो का विवाह करवाने का फैसला किया था।
दोनो का हुआ विवाह विवाह के बाद दोनों एक दूसरे के साथ काफी खुश थे। इन दोनो कि बातें पूरे देश में फैल गई और चर्चे भी होने लगे। कहा जाता है कि वीरा और धीरा दोनो ही शिकार खेलने जाते थे कि तभी कालिया नाम के एक डाकू ने धीरा को देख लिया और उसपर मोहित हो गया। धीरा को पाने के लिए उस डाकू ने वीरा को मारने की योजना बनाई।
एक दिन शिकार में देर होने के कारण दोनों ने पहाड़ी पर रात गुजारने का फैसला कर लिया। धीरा को अचानक प्यास लगी तो वीरा रात में ही पानी लेने के लिए निकल गया।
ऐसे हुई सिंदूर लगाने कि प्रथा की शुरुआत
पानी लेने जा रहे वीरा पर अचानक कालिया डाकू ने हमला कर दिया जिससे वीरा घायल हो गया और धरती में गिर के तड़पने लगा। ये देखकर डाकू जोर जोर से हंसने लगा जिसकी आवाज धीरा ने सुन ली। जब धीरा भागती हुई उस जगह पर पहुंची तो वीरा की हालत देखकर क्रोधित होकर पीछे से डाकू पर हमला कर दिया। धीरा के वार से घायल डाकू जब आखिरी सांसे गिर रहा था तभी वीरा को होश आया और उसने धीरा की वीरता से खुश होकर उसके मांग में अपने रक्त भर दिया। उसी दिन से सिंदूर भरने की ये प्रथा की शुरुआत हुई थी।
सिन्दूर का महत्व | सिंदूर कैसे बनता है? | सिंदूर का पौधा
सुहागिनों का सौभाग्य बढ़ाने वाला सिंदूर इसकी फली से निकलता है। मान्यता है कि वन प्रवास के दौरान माता सीता इसी फल के पराग को अपनी मांग में लगाती थीं। महाबली हनुमान इसी का लेप तन पर लगाया करते थे। औषधीय गुणों से भरपूर कमीला को दर्जनों रोगों के उपचार हेतु प्रयोग किया जाता है।
कमीला को रोरी, सिंदूरी, कपीला, कमूद, रैनी, सेरिया आदि नामों से भी जाना जाता है। संस्कृत भाषा में कम्पिल्लक, रक्तांग रेची, रक्त चूर्णक एवं लैटिन में मालोटस, फिलिपिनेसिस नाम से प्रसिद्ध है। बीस से पच्चीस फीट ऊंचे इस वृक्ष में फली गुच्छ के रूप में लगती है। फली का आकार मटर की फली की तरह होता है व शरद ऋतु में वृक्ष फली से लद जाता है। फली के अंदर भाग का आकार भी मटर की फली जैसा होता है जिसमें सरसों के आकार के दाने होते हैं जो लाल रंग के पराग से ढके होते हैं जिसे बिना कुछ मिलाए विशुद्ध सिंदूर, रोरी, कुमकुम की तरह प्रयोग किया जाता है।
पता चला किसी ने सिंदूर के माध्यम से एक बार फिर से आस्थाओ ,परम्पराओ और रीतियों का मजाक उड़ाया ,खैर ये कोई नई बात नही है सोने को जितना तपाया जाता है वो उतना ही निखार ले कर सामने आता है , भारतीय परम्पराओ का यदि मजाक न उड़ाया जाए तो उसपे लोग लिखे क्यों और उनके वास्तविक रूप का लोगो को पता कैसे चले । तो आइये आप सभी को सिंदूर और उसके लाभ से परिचित कराते है और एक बार फिर वैदिक रीतियों में छुपे वैज्ञानिक आधार से रूबरू होकर गौरवान्वित होते है।
सुहागिनों का सौभाग्य बढ़ाने वाला सिंदूर इसकी फली से निकलता है। मान्यता है कि वन प्रवास के दौरान माता सीता इसी फल के पराग को अपनी मांग में लगाती थीं। महाबली हनुमान इसी का लेप तन पर लगाया करते थे। औषधीय गुणों से भरपूर कमीला को दर्जनों रोगों के उपचार हेतु प्रयोग किया जाता है।
कमीला को रोरी, सिंदूरी, कपीला, कमूद, रैनी, सेरिया आदि नामों से भी जाना जाता है। संस्कृत भाषा में कम्पिल्लक, रक्तांग रेची, रक्त चूर्णक एवं लैटिन में मालोटस, फिलिपिनेसिस नाम से प्रसिद्ध है। बीस से पच्चीस फीट ऊंचे इस वृक्ष में फली गुच्छ के रूप में लगती है। फली का आकार मटर की फली की तरह होता है व शरद ऋतु में वृक्ष फली से लद जाता है। फली के अंदर भाग का आकार भी मटर की फली जैसा होता है जिसमें सरसों के आकार के दाने होते हैं जो लाल रंग के पराग से ढके होते हैं जिसे बिना कुछ मिलाए विशुद्ध सिंदूर, रोरी, कुमकुम की तरह प्रयोग किया जाता है.
सिन्दूर क्या है:
सिन्दूर लाल रंग एक चूर्ण होता है जिसे विवाहित स्त्रियाँ अपनी माँग में भरती हैं। प्राचीन हिंदू संस्कृति में भी सिन्दूर का काफ़ी महत्व है और महर्षियों ने इसका महत्त्व “सिन्दूरं सौभाग्य वर्धनम” कहकर बताया है। ऐसा माना जाता है कि यह प्रथा 5000 वर्ष पूर्व से ही प्रचलित है।
सनातन संस्कृति में विवाहित महिलाओं को पति द्वारा माँग में सिन्दूर भरा जाता है सिन्दूर लगाते समय मंत्रोउच्चार मे कहा जाता है कि –
सम्राज्ञी श्वसुरे भव, सम्राज्ञी श्वश्रवाँ भव।
ननान्दरि सम्राज्ञी भव, सम्रज्ञी अधि देवृषु ।।
इहैव स्तं मा वि योष्टं विश्वसायुर्व्यश्नुतम्।
क्रीडन्तौ प्र्त्रैर्नप्तृभिर्मोदमान्नौ स्वस्त कौ।।
सिन्दूर बनता कैसे है?
एक खास पौधा है जिसकी फली से सिन्दूर बनाया जाता है जिसे ऑर्गेनिक सिन्दूर कहते है| वास्तव में भारत में इसी सिन्दूर का महत्त्व है | इस पौधे को कमीला भी कहा जाता है और इसे रोरी, सिंदूरी, कपीला, कमूद, रैनी, सेरिया आदि नामों से भी जाना जाता है। संस्कृत भाषा में कम्पिल्लक, रक्तांग रेची, रक्त चूर्णक एवं लैटिन में मालोटस, फिलिपिनेसिस नाम से प्रसिद्ध है। बीस से पच्चीस फीट ऊंचे इस वृक्ष में फली गुच्छ के रूप में लगती है। फली का आकार मटर की फली की तरह होता है व शरद ऋतु में वृक्ष फली से लद जाता है। फली के अंदर भाग का आकार भी मटर की फली जैसा होता है जिसमें सरसों के आकार के दाने होते हैं जो लाल रंग के पराग से ढके होते हैं जिसे बिना कुछ मिलाए विशुद्ध सिंदूर, रोरी, कुमकुम की तरह प्रयोग किया जाता है।
रासायनिक सिंदूर (Cinabar) या मरक्यूरिक सल्फाइड Mercuric Sulphide (HgS):
जहाँ पहले लोग सिन्दूर 5000 सालो से घर पर बनाते आये थे अब पश्चिमीकरण के दौर में आसानी से बाजारों में सिंथेटिक सिन्दूर हर जगह बिक रहा है आज कुछ अनब्रैंडेड लाल रंग के पावडर मिलते हैं जिनके दाम दूसरे सिंदूर के तुलना में कम होते हैं। क्योंकि उत्पादक सिंदूर को सस्ता बनाने के लिए उसमें विषाक्त पदार्थ डालते है जो सिंदूर के रंग को और भी लाल बनाने में सहायता करते हैं। ऐसे सिंदूर नारियों को बहुत आकर्षक लगते हैं और वे इन्हें खरीदने के समय इसमें इस्तेमाल किए गए सामग्रियों को देखते भी नहीं हैं।
Cinnabar पावडर के रूप में होता है जो साधारणतः नारंगी लाल रंग का होता है, रासायनिक डाई और दूसरे सिन्थेटिक तत्व होते हैं, लाल कच्चा सीसा (crude red lead) पावडर के रूप में होता है, पीबी304, रोडामाइन बी डाई ,मर्क्यरी सल्फाइट आदि तत्व होते हैं।
सिन्दूर लगाने से लाभ:
सिन्दूर के संबंध में पौराणिक मान्यता के अलावा कुछ वैज्ञानिक कारण भी है। इससे रक्त चाप तथा पीयूष ग्रंथि भी नियंत्रित होती है। जिसके कारण इसमें एक शारीरिक महत्व भी शामिल हो जाता है। इसलिए सिंदूर को हमारी भावनाओं के केन्द्र, पिट्यूटरी ग्रंथ पर लगाना चाहिए।
सिर के उस स्थान पर जहां मांग भरी जाने की परंपरा है, मस्तिष्क की एक महत्वपूर्ण ग्रंथी होती है, जिसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं । यह अत्यंत संवेदनशील होती है । यह मांग के स्थान यानी कपाल के अंत से लेकर सिर के मध्य तक होती है ।
महिलाओं को तनाव से दूर रखते हुवे यह मस्तिष्क को हमेशा चैतन्य अवस्था में रखता है। विवाह के बाद ही मांग इसलिए भरी जाती है क्योंकि विवाह के बाद जब गृहस्थी का दबाव महिला पर आता है तो उसे तनाव, चिंता और अनिद्रा जैसी बीमारिया आमतौर पर घेर लेती हैं । सिन्दूर शरीर के ब्लड प्रेशर को कंट्रोल रखता है। विधवा औरतें इसे नहीं लगातीं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि सिन्दूर यौन उत्तेजनाएं बढ़ाता है।
एक्यूप्रेशर में सिन्दूर:
GV22 से GV29 पॉइंट तक दवाब बनाये रखने के लिए भी सिन्दूर लगाया जाता है जिससे कि चिड़चिड़ापन कम होता है डिप्रेशन ,हायपर एक्टिविटी को कम करता है, इसपे दवाब से चेतना ,ब्लड सर्कुलेशन सामान्य रहता है और अन्य मौसमी बीमारियों से बचाव होता है| पिछली बार की तरह कुछ महिला मित्रो को ये ना लगे कि सिर्फ स्त्रियों के लिए ही क्यों तो वो ये जान ले कि भारत में सिर्फ महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुष भी अपने माथे पर तिलक लगाते हैं। और इन पॉइंट्स को manag करने के लिए साफा ,बाना ,पगड़ी ,टोपी पहनते थे। आप चुटिया या चोटी को भी इसका ही हिस्सा मान सकते है ।।
नाक तक सिन्दूर लगाने का कारण:
छठ जैसे त्योहारो पर नाक तक सिन्दूर लगाने का मजाक बनाने वाले मानसिक विकलांगो को पता होना चाहिए कि हमारी आंखों के बीच में माथे तक एक नस जाती है। कुमकुम या तिलक लगाने से उस माथे की बीच वाली जगह पर एनर्जी बनी रहती है। तिलक लगाने या बिंदी लगाने के दौरान उंगली से चेहरे की स्किन के बीच संपर्क होता है तो चेहरे की स्किन को रक्त सप्लाई करने वाली मांसपेशियां सक्रिय हो जाती हैं। इससे चेहरे की कोशिकाओं में ब्लड सर्कुलेशन बना रहता है।यही प्रक्रिया नाक तक सिन्दूर लगाने के दौरान भी होती है|
विशेष – सिंदूर हर विवाहित स्त्री के लिए उनके सुहागन होने की निशानी के रूप में भी देखा जाता है क्योकि सिर्फ विवाहित स्त्रियाँ ही इसे लगा सकती है। इस तरह सिंदूर भरने को भी संस्कार माना जाता है जोकि सुमंगली क्रिया में आता है । शादी होने के बाद से लेकर पति या अपनी मृत्यु तक हर वैवाहिता अपनी मांग में सिंदूर अवश्य लगाती है। इसे नारी के श्रृंगार में एक अहम स्थान प्राप्त है जिसे महिलाओं के लिए मंगल सूचक माना जाता है|
जिस तरह के सिंदूर के लाभ है उनसे ये कहा जाता है कि सिंदूर महिलाओं के लिए अमृत या जीवन की तरह होता है क्योकि ये ना सिर्फ चिंता मुक्त करता है बल्कि अनिद्रा, सिर दर्द, याददाशत का कमजोर होना, मन की में अशांति और चेहरे की झुर्रियाँ जैसी समस्याओं को भी दूर करता है। समुद्र शास्त्र में तो ये भी लिखा गया है कि सिंदूर अभागिन स्त्रियों के लिए नए भाग्य के द्वार खोलता है और उनके सभी दोषों का निवारण करता है।
सिन्दूर जहाँ सौभाग्य का प्रतीक है वही स्वास्थ्य के लिए हितकर भी क्योकि ये ना सिर्फ चिंता मुक्त करता है बल्कि अनिद्रा, सिर दर्द, याददाशत का कमजोर होना, मन की में अशांति और चेहरे की झुर्रियाँ जैसी समस्याओं को भी दूर करता है,उस सिन्दूर को सौभाग्य की जगह गुलामी का प्रतीक मानना और कुछ नही बस मानसिक दिवालियापन है । एक सिंदूर का पौधा अपने घर में जरूर लगाए और इसे र्दुलभ होने से बचाए। अगर आपके यहाँ इसके पेड़ है तो इसके बीजों को जरूरतमंद लोगों में जरूर बांटे।
नव भारत की मॉडर्न नारी जिनके लिए सिंदूर एक औपचारिकता मात्र रह गया है सिंदूर की उपयोगिता
एवं महत्व को भूलिए नहीं हर प्रकार से लाभदायक है
भारतीय नारी माथे की सुंदरता एवं तेज दिव्यता को एवं अलौकिक सौंदर्य को परिभाषित करता है सिंदूर
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि lordkart.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
Source: Facebook: Spiritualgurukul