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षटतिला एकादशी व्रत का महत्व | Shatila Ekadashi Vrat Katha | Shatila Ekadashi Vrat Vidhi

षटतिला-एकादशी-व्रत-कथा-2024

Shattila Ekadashi 2024: षटतिला एकादशी का व्रत 6 फरवरी यानी आज रखा जा रहा है. वैसे तो हर एकादशी तिथि विशेष है और इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत किया जाता है, लेकिन षटतिला एकादशी का महत्व अधिक माना गया है. षटतिला एकादशी के दिन तिलों का छ: प्रकार से उपयोग किया जाता है. जैसे – तिल से स्नान करना, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन करना, तिल से तर्पण करना, तिल का भोजन करना और तिलों का दान करना – ये छ: प्रकार के उपयोग हैं. इसलिए इसे षटतिला एकादशी व्रत कहा जाता है.

 षटतिला एकादशी व्रत का महत्व | Importance of Shatatila Ekadashi Vrat


इस दिन जो व्यक्ति श्रद्धा भाव से षटतिला एकादशी का व्रत रखते हैं, उनके सभी पापों का नाश होता है. इसलिए माघ मास में पूरे माह व्यक्ति को अपनी समस्त इन्द्रियों पर काबू रखना चाहिए. काम, क्रोध, अहंकार, बुराई तथा चुगली का त्याग कर भगवान की शरण में जाना चाहिए. माघ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को व्रत रखना चाहिए. इससे मनुष्य के सभी पाप समाप्त हो जाएंगें तथा उसे स्वर्ग की प्राप्ति होगी.

षटतिला एकादशी व्रत विधि | Shatatila Ekadashi Fast Method


एक बार दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा कि पृथ्वी लोक पर मनुष्य अनेक प्रकार के दुर्व्यसनों में फंसा रहता है, अन्य लोगों की चुगलियाँ करता है. ब्राह्मण हत्या, चोरी तथा अन्य बहुत से पाप कर्म करता है फिर भी उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है. दालभ्य ऋषि बोले कि आप मुझे ये बताएं कि ये मनुष्य कौन सा दान अथवा पुण्य कर्म करते हैं जिससे इनके सभी पापों का नाश होता है. तब पुलस्त्य ऋषि ने कहा कि हे ऋषिवर आज मैं आपको वह भेद बताता हूँ जो आज तक किसी को स्वर्ग लोक में भी नहीं पता है. ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा देवताओं के देव इन्द्र को भी इस भेद के बारे में जानकारी नहीं है.


पुलस्त्य ऋषि ने कहा कि माघ मास लगते ही मनुष्य को सुबह स्नान आदि करके शुद्ध रहना चाहिए.अपनी समस्त इन्द्रियों को अपने संयम रखकर भगवान का स्मरण करना चाहिए. व्यक्ति पुष्य नक्षत्र में तिल तथा कपास को गोबर में मिलाकर उसके 108 कण्डे बनाकर रख लें. माघ मास की षटतिला एकादशी को सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. व्रत करने का संकल्प करके भगवान विष्णु जी का ध्यान करना चाहिए. यदि व्रत आदि में किसी प्रकार की भूल हो जाए तब भगवान कृष्ण जी से क्षमा याचना करनी चाहिए. रात्रि में गोबर के 108 कंडों से हवन करना चाहिए. रात भर जागरण करके भगवान का भजन करना चाहिए. अगले दिन धूप-दीप और नैवेद्य से भगवान का भजन-पूजन करने के पश्चात खिचडी़ का भोग लगाना चाहिए. यदि किसी व्यक्ति के पास पूजन की पर्याप्त सामग्री उपलब्ध नहीं है तब वह सौ सुपारियों से भगवान का पूजन कर सकता है तथा अर्ध्यदान कर सकता है.

अर्ध्य देते समय आप निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए –


कृष्ण कृष्ण कृपालुस्त्वमगतीनां गतिर्भव ।
संसारार्णवमग्नानां प्रसीद पुरुषोत्तम ॥
नमस्ते पुण्डरीकाक्ष नमस्ते विश्वभावन ।
सुब्रह्मण्य नमस्तेSस्तु महापुरुष पूर्वज ॥
गृहाणार्ध्यं मया दत्तं लक्ष्म्या सह जगत्पते ।


व्यक्ति इस प्रार्थना को ऎसे भी बोल सकते हैं कि हे प्रभु आप दीनों को शरण देने वाले हैं. संसार के सागर में फंसे हुए लोगों का उद्धार करने वाले हैं. हे पुंडरीकाक्ष ! हे विश्वभावन ! हे सुब्रह्मण्य ! हे पूर्वज ! हे जगत्पते ! आपको नमस्कार है. आप लक्ष्मी जी सहित मेरे दिए अर्ध्य को स्वीकार करें. इसके बाद व्यक्ति को ब्राह्मण की पूजा करनी चाहिए. ब्राह्मण को जल से भरा घडा़, छाता, जूते तथा वस्त्र देने चाहिए. इसके अतिरिक्त यदि किसी व्यक्ति की सामर्थ्य है तब वह काली गाय का दान ब्राह्मण को कर सकता है. जो भी व्यक्ति इस षटतिला एकादशी के व्रत को करता है उसे तिलों से भरा घडा़ भी ब्राह्मण को दान करना चाहिए. जितने तिलों का दान वह करेगा उतने ही ह्जार वर्ष तक वह स्वर्गलोक में रहेगा.

षटतिला एकादशी व्रत कथा | Shatatila Ekadashi Fast Story


एक बार भगवान विष्णु ने नारद जी को एक सत्य घटना से अवगत कराया और नारदजी को एक षटतिला एकादशी के व्रत का महत्व बताया. इस एकादशी को रखने की जो कथा भगवान विष्णु जी ने नारद जी को सुनाई वह इस प्रकार से है –
प्राचीन काल में पृथ्वी लोक में एक ब्राह्मणी रहती थी. वह हमेशा व्रत करती थी लेकिन किसी ब्राह्मण अथवा साधु को कभी दान आदि नहीं देती थी. एक बार उसने एक माह तक लगातार व्रत रखा. इससे उस ब्राह्मणी का शरीर बहुत कमजोर हो गया था. तब भगवान विष्णु ने सोचा कि इस ब्राह्मणी ने व्रत रख कर अपना शरीर शुद्ध कर लिया है अत: इसे विष्णु लोक में स्थान तो मिल जाएगा परन्तु इसने कभी अन्न का दान नहीं किया,. इससे ब्राह्मणी की तृप्ति होना कठिन है. इसलिए भगवान विष्णु ने सोचा कि वह भिखारी का वेश धारण करके उस ब्राह्मणी के पास जाएंगें और उससे भिक्षा मांगेगे. यदि वह भिक्षा दे देती है तब उसकी तृप्ति अवश्य हो जाएगी और भगवान विष्णु भिखारी के वेश में पृथ्वी लोक पर उस ब्राह्मणी के पास जाते हैं और उससे भिक्षा माँगते हैं. वह ब्राह्मणी विष्णु जी से पूछती है – महाराज किसलिए आए हो? विष्णु जी बोले मुझे भिक्षा चाहिए. यह सुनते ही उस ब्राह्मणी ने मिट्टी का एक ढे़ला विष्णु जी के भिक्षापात्र में डाल दिया. विष्णु जी उस मिट्टी के ढेले को लेकर स्वर्गलोक में लौट आये.


कुछ समय के बाद ब्राह्मणी ने अपना शरीर त्याग दिया और स्वर्ग लोक में आ गई. मिट्टी का ढेला दान करने से उस ब्राह्मणी को स्वर्ग में सुंदर महल तो मिल गया परन्तु उसने कभी अन्न का दान नहीं किया था इसलिए महल में अन्न आदि से बनी कोई सामग्री नहीं थी. वह घबराकर विष्णु जी के पास गई और कहने लगी कि हे भगवन मैंने आपके लिए व्रत आदि रखकर आपकी बहुत पूजा की उसके बावजूद भी मेरे घर में अन्नादि वस्तुओं का अभाव है. ऎसा क्यों है? तब विष्णु जी बोले कि तुम पहले अपने घर जाओ. तुम्हें मिलने और देखने के लिए देवस्त्रियाँ आएँगी, तुम अपना द्वार खोलने से पहले उनसे षटतिला एकादशी की विधि और उसके महात्म्य के बारे में सुनना तब द्वार खोलना. ब्राह्मणी ने वैसे ही किया. द्वार खोलने से पहले षटतिला एकादशी व्रत के महात्म्य के बारे में पूछा. एक देवस्त्री ने ब्राह्मणी की बात सुनकर उसे षटतिला एकादशी व्रत के महात्म्य के बारे में जानकारी दी. उस जानकारी के बाद ब्राह्मणी ने द्वार खोल दिए. देवस्त्रियों ने देखा कि वह ब्राह्मणी न तो गांधर्वी है और ना ही आसुरी है. वह पहले जैसे मनुष्य रुप में ही थी. अब उस ब्राह्मणी को दान ना देने का पता चला. अब उस ब्राह्मणी ने देवस्त्री के कहे अनुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया. इससे उसके समस्त पापों का नाश हो गया. वह सुंदर तथा रुपवति हो गई. अब उसका घर अन्नादि सभी प्रकार की वस्तुओं से भर गया.


इस प्रकार सभी मनुष्यों को लालच का त्याग करना चाहिए. किसी प्रकार का लोभ नहीं करना चाहिए. षटतिला एकादशी के दिन तिल के साथ अन्य अन्नादि का भी दान करना चाहिए. इससे मनुष्य का सौभाग्य बली होगा. कष्ट तथा दरिद्रता दूर होगी. विधिवत तरीके से व्रत रखने से स्वर्ग लोक की प्राप्ति होगी.

Disclaimerयहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि lordkart.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें. 

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