भगवान श्री कृष्णा ने द्वारका नगरी को क्यों बसाया था और द्वारका क्यों डूब गई?

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द्वारका नगरी को श्रीकृष्ण की कर्मभूमि भी माना जाता है महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार श्री कृष्ण जब कंस का वध किया तब जरासंध कृष्ण और यदुवंशियों का नामोनिशान मिटाने की थाली और मौका मिलते ही जरासंध मथुरा और यादवों पर हर बार आक्रमण करता रहा धीरे-धीरे उसके अत्याचार पढ़ने लगे तो अंत में यादवों की सुरक्षा के लिए श्री कृष्ण मथुरा को छोड़ने का निर्णय लिया और मथुरा से निकलने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने कैसे नगर की स्थापना की जो विशाल और संस्था इस नगर नाम था द्वारका नगरी कहते हैं कि श्री कृष्ण के साथ द्वारका में बड़े आराम से रहने लगे समय बीता गया 36 साल तक राज करने के बाद और श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद द्वारका नगरी समुद्र में समा गई।
पौराणिक ग्रंथों में द्वारका के समुद्र में विलीन होने से जुड़ी तो कथाओं का विवरण मिलता है पहला माता गांधारी द्वारा श्रीकृष्ण को दिया गया श्राप और दूसरा ऋषि द्वारा श्री कृष्ण पुत्र शाम को दिया गया श्राप कथा के अनुसार महाभारत युद्ध में कौरवों पर विजय प्राप्त करने के पश्चात जब युधिष्ठिर का हस्तिनापुर की राज महल में राजतिलक हो रहा था तब कौरवों की माता गांधारी ने अपने सौ पुत्रों के बाद और महाभारत युद्ध के लिए श्रीकृष्ण को दोषी ठहराते हुए श्राप दिया कि जिस प्रकार और कौरवों के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी प्रकार यदुवंश का विनाश होगा जबकि दूसरी कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के 36 वर्ष पश्चात द्वारका में तरह-तरह के अपशकुन होने लगे
ताकि केंद्र श्री विश्वमित्र गांव देवर्षि नारद आदि द्वारका आए यादव कुल की नव युवकों ने उनके साथ परिहास करने का सोचा इसके लिए वे श्रीकृष्ण के पुत्र को स्त्री भेष में विषयों के पास ले गए और कहा कि स्त्री गर्भवती है आप लोग बताइए किस के गर्भ से क्या उत्पन्न होगा नव युवकों के ऐसा कहने के बाद विश्वामित्र ध्यान करने लगे और जब उन्हें पता चला उनके सामने यह सभी जिसे स्त्री बता रहे हैं वह वास्तव में एक पुरुष है तो उन लोगों को बड़ा क्रोध आया और फिर उन्होंने नवयुवकों से कहा तुम लोगों ने हमारा अपमान किया है इसलिए श्री कृष्ण का यह पुत्र एक लोहे के मुसल को जन्म देगा जिससे तुम लोग अपने समस्त कुल का संहार करोगे उस मुसल के प्रभाव से केवल श्री कृष्ण और बलराम ही बच पाएंगे उधर श्री कृष्ण को जब यह बात पता चली तो उन्होंने कहा यह बात अवश्य सत्य होगी।
कृष्ण पुत्र ने दूसरे ही दिन सामने मुसल को जन्म दिया जब यह बात राजा उग्रसेन को पता चली तो उन्होंने उस मुसल को चुराकर समुद्र में फेंक दिया इसके बाद राजा उग्रसेन श्री कृष्ण नगर में घोषणा करवा दी कि आज से कोई भी व्यक्ति अपने घर में मदिरा तैयार नहीं करेगा।और यदि ऐसा करता कोई भी व्यक्ति पकड़ा जाएगा तो उसे मृत्युदंड दिया जाएगा घोषणा सुनकर द्वारका वासियों ने मदिरा नहीं बनाने का निश्चय किया परंतु फिर भी इसके बाद द्वारका में भयंकर अपशकुन होने लगे प्रतिदिन आंधी चलने लगी चूहे इतनी बढ़ गई कि मार्गों पर मनुष्यों से ज्यादा चूहे दिखाई देने लगे उस समय यदुवंशियों को पाप करते शर्म नहीं आती थी उधर नगर में होते नक्षत्रों को दे भगवान श्रीकृष्ण समझ गए कि कौरवों की माता गांधारी का श्राप सत्य होने का समय आ गया है।उन्होंने देखा कि इस समय वैसा ही योग बन रहा है जैसा महाभारत के युद्ध के समय बना था फिर श्री कृष्ण यदुवंशियों को तीर्थ यात्रा करने की आज्ञा दी श्री कृष्ण की आज्ञा से सभी राजवंशी समुद्र के तट पर प्रभाकर निवास करने लगे ।प्रभास तीर्थ में रहते हुए एक व्यक्ति ने आवेश में आकर कृतवर्मा का उपहास उड़ाया और अनादर कर दिया कृष्णा ने भी कुछ ऐसे शब्द कहे कि सत्य को क्रोध आ गया और उसने कृतवर्मा का वध कर दिया।यह देख अंधक बच्चों ने सत्य की को घेर लिया और हमला कर दिया।
सत्य को अकेला देख श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न उसे बचाने दौड़े और सत्य की और प्रद्युम्न अकेले ही भिड़ गए परंतु संख्या में अधिक होने के कारण भी अंधक पंछियों को पराजित नहीं कर पाए और अंत में उनके हाथों मारे गए ।अपने पुत्र की मृत्यु से क्रोधित होकर श्री कृष्ण एक मुट्ठी एरका घास उखाड़ ली हाथ में आते ही वह घास वज्र के समान भयंकर लोहे की मुसल बन गई । उस समय मुस्ल के एक ही प्रहार से प्राण निकल जाते थे उस समय काल के प्रभाव से सभी मित्रों से एक दूसरे का वध करने लगे यदुवंशी भी आपस में लड़ते हुए मरने लगे श्री कृष्ण के देखते ही देखते सारे कुल की नाश हो गया। अंत में श्री कृष्ण ने अपने सारथी दा रूप से कहा कि तुम हस्तिनापुर जाओ और अर्जुन को पूरी घटना बताकर द्वारका ले आओ।
इसके बाद श्री कृष्णा बलराम को उसी स्थान पर रहने का कहकर द्वारका लौटाए श्री कृष्ण पूरी घटना अपने पिता वासुदेव जी को बता दी यदुवंशी सहार की बात जानकर उन्हें भी बहुत दुख हुआ श्री कृष्ण वासुदेव जी से कहा कि आप अर्जुन के आने तक स्त्रियों की रक्षा करें इस समय बलराम जीवन में मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं मैं उनसे मिलने जा रहा हूं यह कहकर श्री कृष्ण बलराम से मिलने चल पड़े वन में जाकर श्री कृष्ण ने देखा कि बलराम जी समाधि में लीन है देखते ही देखते बलराम शेषनाग रूप में परिवर्तित हो गए और भगवान श्री कृष्ण से आज्ञा लेकर बैकुंठधाम वापस लौट गए उधर बलराम जी द्वारा देह त्यागने के बाद श्री कृष्ण वन में घूमने लगे घूमते घूमते में एक स्थान पर बैठ गए और गांधारी द्वारा दिए गए सर आपके बारे में विचार करने लगे देह त्यागने की इच्छा से श्री कृष्ण ने अपनी इंद्रियों का संयमित किया और महायोग की अवस्था में पृथ्वी पर लेट गए जिस समय भगवान श्री कृष्ण समाधि में लीन थे उसी समय जरा नाम का एक शिकारी हिरण का शिकार करने के उद्देश्य से वहां गया उसने हिरण समझकर दूर से ही श्रीकृष्ण पर चला दिया बाण चलाने के बाद जब वह अपना शिकार पकड़ने के लिए आगे बढ़ा तो योग में स्थित भगवान श्री कृष्ण को देख कर उसे अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ तब श्री कृष्ण ने उसे आश्वासन दिया और परमधाम चले गए इधर दारू हस्तिनापुर पहुंचकर यदुवंशियों के सहार की पूरी घटना पांडवों को बता दी यह सुनकर पांडवो को बहुत दुःख हुआ।
अर्जुन तुरंत ही अपने मामा वसुदेव से मिलने के लिए द्वारका चल दिए अर्जुन जब द्वारका पहुंचे तो श्रीकृष्ण की रानियां उन्हें देखकर रोने लगी उन्हें रोता देख अर्जुन भी रोने लगे श्री कृष्ण को याद करने लगे इसके बाद अर्जुन वसुदेव जी से मिले वसुदेव जी ने अर्जुन को श्रीकृष्ण का संदेश सुनाते हुए कहा कि द्वारका शीघ्र ही समुद्र में डूबने वाली है अतः तुम सभी नगर वासियों को अपने साथ ले जाओ उसके बाद अर्जुन अपने साथ श्री कृष्ण के परिजनों तथा सभी नगर वासियों को लेकर इंद्रप्रस्थ की ओर चलती है उन सभी के जाते ही द्वारका समुद्र में डूब गई ।
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