2025 में कृष्ण जन्माष्टमी कब है – तारीख, महत्व, पूजा विधि और उत्सव के बारे में जानें
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2025 में जन्माष्टमी कब है?
जन्माष्टमी, भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिन्दू पर्व है। यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, और मध्य प्रदेश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। श्री कृष्ण के भक्त इस दिन भगवान श्री कृष्ण के जन्म की खुशी मनाने के लिए उपवासी रहते हैं, पूजा करते हैं, और भक्ति गीत गाते हैं। इस दिन का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि यह हमें जीवन में सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देता है।
हर साल यह पर्व कृष्ण पक्ष की आठवीं तिथि को मनाया जाता है, जो हिन्दू कैलेंडर के अनुसार अलग-अलग तारीखों पर आता है। कृष्ण जन्माष्टमी 15 अगस्त रात 11 बजकर 49 मिनट से लग जाएगी, जिसका समापन 16 अगस्त रात 09 बजकर 34 मिनट पर होगा। इस दिन विशेष रूप से रात को रात्रि जागरण, भजन संकीर्तन, और भगवान कृष्ण की पूजा होती है। इस दिन को लेकर कई स्थानों पर मेला भी लगता है, और खासतौर पर मथुरा और वृंदावन जैसे स्थानों में इस पर्व की धूम होती है।
जन्माष्टमी का महत्व
जन्माष्टमी का महत्व अत्यधिक है, क्योंकि यह भगवान श्री कृष्ण के जन्म की खुशी का पर्व है। भगवान कृष्ण को धरती पर अवतार लेने का कारण था धर्म की स्थापना और अधर्म को नष्ट करना। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में हमें जीवन के सही रास्ते पर चलने की शिक्षा दी है। जन्माष्टमी का पर्व हमें इस बात की याद दिलाता है कि भगवान कृष्ण हमारे भीतर मौजूद हैं और हमें जीवन में सत्य, धर्म, और नैतिकता की राह पर चलना चाहिए।
भगवान श्री कृष्ण का जीवन हमें प्रेरणा देता है कि कैसे मुश्किल परिस्थितियों में भी सत्य और न्याय की राह अपनाई जा सकती है। उनका जीवन लीलाओं से भरा हुआ था, जो न केवल भक्तों को मनोरंजन देती हैं, बल्कि जीवन के सही दृष्टिकोण को भी समझाती हैं।
जन्माष्टमी की पूजा विधि
जन्माष्टमी के दिन विशेष पूजा विधि का पालन किया जाता है। इस दिन उपवासी रहकर भगवान श्री कृष्ण की आराधना की जाती है। भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार पूजा करते हैं। यहां पर जन्माष्टमी की पूजा विधि दी जा रही है, जिसे अपनाकर आप इस पावन पर्व को पूरी श्रद्धा से मना सकते हैं।
- स्नान और शुद्धता: पूजा से पहले स्नान करके शुद्ध होना बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन शरीर को शुद्ध करने के साथ-साथ मन और विचारों को भी शुद्ध करना चाहिए।
- व्रत का पालन: जन्माष्टमी के दिन उपवासी रहकर व्रत किया जाता है। विशेष रूप से कृष्ण भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और रात्रि में पूजा करते हैं। व्रत का मुख्य उद्देश्य भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति को प्रकट करना है।
- मूर्ति की स्थापना: पूजा स्थान पर भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति या चित्र की स्थापना करें। इसे अच्छे से सजाएं और आस-पास को साफ और स्वच्छ रखें। मूर्ति को फल, फूल, मेवे, और दूध का भोग अर्पित करें।
- आरती और मंत्रोच्चारण: भगवान श्री कृष्ण की पूजा करते समय उनकी आरती का गाना बेहद शुभ माना जाता है। “जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण” जैसे मंत्र का उच्चारण करें। इसके अलावा ‘ॐ श्री कृष्णाय नम:’ जैसे मंत्रों का जाप करना भी लाभकारी होता है।
- भजन संकीर्तन: जन्माष्टमी पर विशेष रूप से रात्रि में भजन संकीर्तन और कीर्तन का आयोजन किया जाता है। भक्त मिलकर भगवान कृष्ण की महिमा का गायन करते हैं और रात्रि जागरण करते हैं।
- मटकी फोड़: महाराष्ट्र में जन्माष्टमी के दिन विशेष रूप से “दही हांडी” या “मटकी फोड़” का आयोजन किया जाता है। इसमें लोग एक मटका (मटकी) में दही, मक्खन, और अन्य सामग्री भरकर ऊँचाई पर लटकाते हैं। फिर युवक समूह इसे फोड़ने के लिए एक-दूसरे की मदद से मानव पिरामिड बनाते हैं। यह भगवान कृष्ण के बाल रूप की याद दिलाता है, जब वह मटकी चुराने के लिए गोवर्धन पर्वत के नीचे छिपे रहते थे।
- नृत्य और आयोजन: इस दिन खासतौर पर “रासलीला” का आयोजन भी किया जाता है। रासलीला, कृष्ण और राधा के बीच प्रेम और भक्ति के दर्शन कराती है। इस दिन कृष्ण के जीवन के विभिन्न प्रसंगों को नृत्य और नाटक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
जन्माष्टमी के दिन के प्रमुख आयोजन
जन्माष्टमी का पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन कुछ विशेष स्थानों पर इसकी धूम और अधिक होती है। विशेष रूप से मथुरा और वृंदावन, जहां भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, जन्माष्टमी के दिन बड़े स्तर पर आयोजन होते हैं। इन स्थानों पर लाखों श्रद्धालु भगवान कृष्ण के दर्शन के लिए आते हैं।
- मथुरा और वृंदावन: मथुरा और वृंदावन में जन्माष्टमी का पर्व विशेष रूप से धूमधाम से मनाया जाता है। यहां भव्य सजावट की जाती है और जगह-जगह पर रासलीला और भजन संकीर्तन का आयोजन किया जाता है। जन्माष्टमी के दिन मथुरा में श्री कृष्ण के जन्म स्थल का दर्शन करना एक विशेष अवसर होता है।
- गोवर्धन पर्वत: गोवर्धन पर्वत, जहां भगवान कृष्ण ने इन्द्रदेव से गोवर्धन पर्वत को उठाकर गांववासियों की रक्षा की थी, वहां भी इस दिन विशेष पूजा होती है। भक्त वहां जाकर भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं और रात्रि जागरण करते हैं।
- दही हांडी (मटकी फोड़): महाराष्ट्र और गुजरात में जन्माष्टमी के दिन दही हांडी का आयोजन बड़े धूमधाम से होता है। इसमें युवक समूह मानव पिरामिड बनाकर मटकी में लटकाए गए दही और मक्खन को फोड़ते हैं। यह भगवान कृष्ण के मटकी चुराने की लीलाओं की याद दिलाता है।
जन्माष्टमी के दिन उपवास और आहार
जन्माष्टमी के दिन उपवासी रहकर व्रत रखना एक प्रमुख परंपरा है। व्रत के दौरान भक्त केवल फल, दूध, और अन्य हल्के आहार लेते हैं, ताकि शरीर और मन को शुद्ध किया जा सके। उपवास रखने से आत्मिक शुद्धि होती है और भक्त भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति को प्रदर्शित करते हैं।
- फलाहार: इस दिन केवल फलाहार करने की परंपरा है। भक्त फल, दूध, और मेवे का सेवन करते हैं। इस दिन हल्के और पचने में आसान आहार लेना चाहिए।
- नैवेद्य: पूजा के बाद भगवान कृष्ण को नैवेद्य अर्पित करें, जिसमें विशेष रूप से मक्खन, दही, और मोदक शामिल होते हैं। मोदक भगवान कृष्ण का प्रिय भोग है, और इसे अर्पित करना शुभ माना जाता है।
जन्माष्टमी और पर्यावरण
आजकल जन्माष्टमी के अवसर पर एक विशेष ध्यान पर्यावरण की सुरक्षा पर भी दिया जाता है। पहले जहां प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों का निर्माण किया जाता था, अब लोग प्राकृतिक मिट्टी की मूर्तियों का उपयोग करने लगे हैं, ताकि विसर्जन के दौरान पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे। इस बात की जागरूकता बढ़ाई जा रही है कि विसर्जन के लिए प्राकृतिक, पर्यावरण-friendly मूर्तियों का उपयोग किया जाए, जो जल में पूरी तरह से घुल सकें।
निष्कर्ष
जन्माष्टमी का पर्व हर वर्ष बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है, और 2025 में भी यह पर्व विशेष उत्साह के साथ मनाया जाएगा। भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव पर लोग न केवल पूजा करते हैं, बल्कि उनके जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को सही दिशा देने की कोशिश करते हैं। इस दिन उपवास, पूजा, और भजन संकीर्तन के माध्यम से भक्त भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं।
2025 में जन्माष्टमी की तारीख है: कृष्ण जन्माष्टमी 15 अगस्त रात 11 बजकर 49 मिनट से लग जाएगी, जिसका समापन 16 अगस्त रात 09 बजकर 34 मिनट पर होगा
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