Prayagraj Maha Kumbh Mela 2025: कुंभ मेले की क्या विशेषताएं हैं? कुंभ मेला क्यों इतना महत्वपूर्ण है ? कुंभ मेले के बारे में रोचक जानकारी

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कुंभ मेला भारतीय संस्कृति और धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। इसे चार स्थानों पर आयोजित किया जाता है: प्रयागराज (उत्तर प्रदेश), हरिद्वार (उत्तराखंड), उज्जैन (मध्य प्रदेश) और नासिक (महाराष्ट्र)। इस मेले की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:
पवित्र स्नान: कुंभ मेले का मुख्य आकर्षण गंगा, यमुना, क्षिप्रा और गोदावरी नदियों में पवित्र स्नान करना है। मान्यता है कि मकर संक्रांति, माघ पूर्णिमा, और अमावस्या जैसे विशेष तिथियों पर स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
धार्मिक महत्व: इस मेले का आयोजन विशेष ज्योतिषीय संयोगों के आधार पर होता है, जब ग्रहों की स्थिति विशेष धार्मिक ऊर्जा का निर्माण करती है।
अखाड़े और संतों का समागम: कुंभ मेले में देशभर के विभिन्न अखाड़ों से साधु-संत आते हैं, जैसे नागा साधु, अवधूत, और संत-महात्मा। उनकी शोभायात्रा और दर्शन का विशेष महत्व होता है।
प्रवचन और सत्संग: मेले के दौरान अनेक साधु-संत और महात्मा प्रवचन, धार्मिक सभाएं और सत्संग का आयोजन करते हैं, जिसमें धर्म, जीवन के उद्देश्य, और मोक्ष प्राप्ति पर विचार किए जाते हैं।
वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण: कुंभ मेला भारतीय संस्कृति का अद्भुत संगम है, जहां आध्यात्मिकता, धार्मिकता, योग और आयुर्वेद का प्रचार-प्रसार होता है। मेले में आने वाले श्रद्धालु भारतीय ज्ञान, योग, और ध्यान का अनुभव करते हैं।
भक्तों की विशाल संख्या: यह विश्व का सबसे बड़ा समागम माना जाता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं।
अद्वितीय सांस्कृतिक अनुभव: कुंभ मेले में विभिन्न राज्यों और संस्कृतियों के लोग इकट्ठा होते हैं, जिससे यह स्थान भारतीय विविधता का प्रतीक बन जाता है।
कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है बल्कि भारतीय संस्कृति, इतिहास और अध्यात्म का महाकुंभ है, जो विभिन्न मान्यताओं और संस्कृतियों को एक साथ जोड़ता है।
कुंभ मेला क्यों इतना महत्वपूर्ण है ?
कुंभ मेला हिन्दुओ का एक ऐसा मेला, जंहा करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल हरिद्वार, उज्जैन, प्रयाग, नासिक में स्नान करते है. प्रत्येक 12 साल में कुंभ मेला लगता है. इस बार कुंभ का आयोजन देव भूमि उतराखंड के हरिद्वार में आयोजित किया जा रहा हैं.
Facts About Kumbh Mela (कुंभ मेले के बारे में रोचक जानकारी)
कुंभ मेला हर 12 साल में आता है और दो बड़े कुंभ मेलों के बीच आने वाले कुंभ को अर्धकुंभ कहा जाता है. महाकुंभ मेले का हिंदू धर्म में बहुत ज्यादा महत्व है। इस बार इसका आयोजन 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हो रहा है। यह मेला दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेलों में से एक है जो (Mahakumbh mela 2025) 12 सालों में एक बार आयोजित किया जाता है तो चलिए इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें जानते हैं।
कुंभ मेले का इतिहास काफी पुराना है, पौराणिक कथाओं के अनुसार कुंभ की शुरुवात समुंद्र मंथन से ही हो गयी थी. समुंद्र मंथन से जब अमृत निकला तो इसे कुंभ (घड़े) में रखा गया था. उस कुंभ को पहले असुरो ने ले लिया था लेकिन भगवान विष्णु ने अमृत कलश असुरो से छीन लिया और भागते समय अमृत कुंभ से हरिद्वार, उज्जैन, प्रयाग, नासिक इन चार स्थानों में गिरा तब से इन स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता हैं.
समुंद्र मंथन से निकले अमृत को पाने के लिए देवताओंऔर असुरो में 12 दिन तक लगातार युद्ध हुआ था, देवताओं के 12 दिन मनुष्य के 12 साल के बराबर होते है और कुंभ भी 12 होता है. उनमे से 4 कुंभ पृथ्वी पर होते है और बाकी के 8 कुंभ देवलोक में होते है ,जिन्हें देवगन ही प्राप्त कर सकते वंहा मनुष्य नहीं पहुच सकता.
- कुंभ मेले का पहला लिखित प्रमाण भागवत पुराण में उल्लेखित है, 400 ईस्वी-पूर्व सम्राट चन्द्रगुप्त के दरबार में यूनानी दूत ने एक इसी तरह के मेले को जिक्र किया है. बौध धर्म के किताबो में भी नदी के किनारे मेले लगने का प्रमाण मिलता है. हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान 629-645 ईस्वी में चीनी यात्री ह्यान-सेंग ने भी इसका उल्लेख किया हैं
- चार शहरो में से प्रयागराज, नासिक, उज्जैन और हरिद्वार, प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेला सबसे पुराना है.
- कुंभ मेले को दुनिया का सबसे बडा धार्मिक मेले की मान्यता मिली है. UNESCO ने भी कुंभ मेले को 9 December 2017 में इसे अपने Cultural Heritage के लिस्ट में शामिल किया है.
- कुंभ मेले का प्रमुख आकर्षण का केंद्र साधू-संतो के 15 अखाड़े होते हैं. जिनमे किन्नर अखाडा और महिला नागा साधु अखाडा भी शामिल है.
- हिन्दू धर्म के रक्षक होने के कारन सबसे पहला कुंभ स्नान नागा साधु ही करते है.
- दो महीनो तक चलने वाला कुंभ पर्व के दौरान स्नान करने लिए विशेष दिनों को सुनिश्चित किया गया है, जिनमे मकर सक्रांति के बाद को सबसे उचित माना गया है. और भी विशेष दिनों में से पौष-पूर्णिमा, एकादशी, मौनी अमावस्या , महाशिवरात्रि आदि प्रमुख है.
कुम्भ मेला क्यों मनाया जाता है?
कुम्भ मेला क्यों मनाया जाता है? इसकी पीछे पौराणिक कथा है, स्कंध पुराण के कथा के अनुसार एक समय भगवान विष्णु के आदेश के अनुसार देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत के लिए क्षीरोद सागर में मंदराचल पर्वत एवं वासुकि नाग के द्वारा समुन्द्र-मंथन किया था. मंथन से 14 प्रकार के निकले, जिससे सबसे पहले विष उत्पन्न हुआ जिसे महादेव शिव ने पी लिया. उसके बाद पुष्पक विमान ,ऐरावत-हाथी , पारिजात-वृक्ष , रम्भा, कौस्तुभ-मणि , चन्द्रमा , कुण्डल, धनुष, कामधेनु, अश्व, लक्ष्मी, धन्वन्तरि देव शिल्पी विश्वकर्मा उत्पन्न हुए।
धन्वन्तरि के हाथों में कुंभ उत्पन्न हुआ जो अमृत से भरा हुआ था। वह अमृत कुम्भ इन्द्र को मिला। देवताओं के कहने पर इन्द्रपुत्र जयंत अमृत-कुम्भ को लेकर भागने लगे तब दानवों ने जयंत का पीछा करने लगे। इसी कुंभ को पाने के लिए देवताओ और दानवों के बिच 12 वर्षो तक प्रलयकारी युद्ध हुआ। कुंभ की रक्षा करते समय पृथ्वी के जिस-जिस स्थान पर अमृत की बूंदे गिरी थी. उस-उस स्थान (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कुंभ महापर्व मनाया जाता है।
कुंभ का मेला कब लगता है?
हर 12 साल बाद कुंभ और छह साल बाद लगता है अर्धकुंभ मेला लगता हैं. इस बार 2021 में हरिद्वार में कुंभ मेला का आयोजित किया जा रहा है.
कुंभ स्थल कौन कौन से हैं?
प्रमुख तौर पर 4 कुंभ स्थल है जो की निम्लिखित है.
- प्रयागराज (Pryagraj) – गंगा (ganga),यमुना(yamuna) और पौराणिक सरस्वती(sarswati) नदी का संगम के तट पर.
- उज्जैन (Ujjain)– में शिप्रा(Shipra) नदी के किनारे
- हरिद्वार (haridwar)– में गंगा (ganga) नदी के किनारे
- नासिक (Nasik)– में गोदावरी(Godavari) नदी के किनारे
कुंभ मेला क्यों इतना महत्वपूर्ण है ?
कुम्भ का शाब्दिक अर्थ है कलश या घड़ा होता हैं, इसी कारण कुम्भ या घड़ा बनाने वाले समुदाय को कुम्हार(कुम्भ+कार) कहा जाता हैं।
कुम्भ की महत्वता के पीछे कहानी कुछ इसप्रकार हैं:
कुम्भ मेले का नाम देवो और असुरों के युद्ध के बाद हुए समुद्र मंथन से 14 रत्नों के साथ साथ प्राप्त अमृत कलश के नाम पर रखा गया हैं। इनमे से प्राप्त 14 रत्नों को तो देव और असुरों में परस्पर बाँट लिया गया परन्तु जब अमृत बांटने की बारी आयी तो फिर युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई।
ऐसे में अमृत कलश की सुरक्षा हेतु देवराज इंद्र के पुत्र जयंत को सौंप दिया और भगवान विष्णु के आदेश से सूर्य, चन्द्र, शनि एवं बृहस्पति गृह भी अमृत कलश की सुरक्षा के रहे थे। इस दौरान जब जयंत दानवों से अमृत कलश की रक्षा हेतु भाग रहे थे तब छीना झपटी में अमृत की कुछ बूंदे पृथ्वी पर चार स्थानों हरिद्वार, नासिक, उजैन और प्रयागराज पर गिरी गयीं। इसप्रकार जहां जहां अमृत बूंदे गिरी वहां वहां कुम्भ मेले का आयोजन होता हैं।
चूँकि विष्णु की आज्ञा से सूर्य, चन्द्र, शनि एवं बृहस्पति अमृत कलश की रक्षा कर रहे थे और ये सभी सिंह, कुम्भ एवं मेष राशियों में विचरण कर रहे थे, इसलिए ये सभी ग्रह एवं राशियों की सहभागिता के कारण कुम्भ पर्व ज्योतिष का पर्व भी बन गया। एवम इसके साथ ही यह भी माना जाता हैं कि चारो स्थान जहां अमृत की बूंदे गिरी वहां उपलब्ध नदियों में भूस्थैतिक गतिशीलता के कारण अमृत में बदल जाने का विश्वास किया जाता है जिससे तीर्थयात्री पवित्रता, मांगलिकता और अमरत्व के भाव में स्नान करने का एक अवसर प्राप्त होता है।
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देवराज इंद्र के पुत्र जयंत को अमृत कलश को स्वर्ग ले जाने में 12 दिन का समय लग गया था और माना जाता है कि देवताओं का एक दिन पृथ्वी के एक वर्ष के बराबर होता है। यही कारण है कि कालान्तर में वर्णित स्थानों पर ही ग्रह-राशियों के विशेष संयोग पर 12 वर्षों में कुम्भ मेले का आयोजन होता है।
वर्तमान में प्रयागराज में कुम्भ चल रहा हैं संक्रांति के त्योहार के साथ शाही स्नान प्रारम्भ हो गए हैं।
ज्योतिष गणना के क्रम में कुम्भ का आयोजन चार प्रकार से माना गया है
बृहस्पति के कुम्भ राशि में तथा सूर्य के मेष राशि में प्रविष्ट होने पर हरिद्वार में गंगा-तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।
बृहस्पति के मेष राशि चक्र में प्रविष्ट होने तथा सूर्य और चन्द्र के मकर राशि में आने पर अमावस्या के दिन प्रयागराज में त्रिवेणी संगम तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।
बृहस्पति एवं सूर्य के सिंह राशि में प्रविष्ट होने पर नासिक में गोदावरी तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।
बृहस्पति के सिंह राशि में तथा सूर्य के मेष राशि में प्रविष्ट होने पर उज्जैन में शिप्रा तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।
महाकुंभ में भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा
महाकुंभ जैसे बड़े आयोजन में इतनी बड़ी भीड़ को संभालना एक चुनौती होती है। इसके लिए विशेष इंतजाम किए जाते हैं:
विशेष यातायात प्रबंधन: सड़क, रेलवे, और हवाई यातायात के लिए विशेष प्रबंधन किया जाता है ताकि तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को आसानी से आने-जाने में सुविधा हो।
स्वास्थ्य और सुरक्षा व्यवस्था: कई मेडिकल कैंप, एम्बुलेंस, और मोबाइल मेडिकल यूनिट्स की व्यवस्था की जाती है। इसके अलावा, पुलिस और अन्य सुरक्षा बल बड़े पैमाने पर तैनात होते हैं।
आवास और ठहरने की व्यवस्था: लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ के कारण अस्थायी शिविर, तंबू, और अन्य आवासीय सुविधाओं की व्यवस्था की जाती है।
कुल मिलाकर, महाकुंभ में अत्यधिक भीड़ होती है, जिसमें देश-विदेश से आए श्रद्धालु अपनी आस्था और आध्यात्मिकता को सुदृढ़ करने के लिए इस अद्भुत आयोजन का हिस्सा बनते हैं।
कैसे पहुँचने प्रयागराज महाकुंभ:
हवाईजहाज से
बमरौली हवाई अड्डा, प्रयागराज – 6 किमी लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डा, वाराणसी – 150 किमी अमौसी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, लखनऊ – 200 किमी
ट्रेन से
प्रयागराज रेलवे जंक्शन – 4 किमी प्रयाग स्टेशन – 2 किमी रामबाग स्टेशन – 3 किमी
सड़क द्वारा
सिविल लाइंस बस स्टैंड – 5 किमी
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि lordkart.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.