दीपावली का पर्व भारत का सबसे बड़ा और रोशनी से भरा हुआ त्यौहार है। इस दिन घर-आंगन दीपों से सजाए जाते हैं, मिठाइयों का आदान-प्रदान होता है और सबसे खास बात, माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। लेकिन अक्सर लोग यह प्रश्न पूछते हैं कि जब माता लक्ष्मी भगवान विष्णु की अर्धांगिनी हैं, तो फिर दिवाली के दिन भगवान विष्णु की पूजा क्यों नहीं की जाती? यह सवाल हर किसी के मन में कभी न कभी जरूर आता है।
इस परंपरा के पीछे गहरी धार्मिक मान्यताएँ, शास्त्रीय कथाएँ और सांस्कृतिक कारण छिपे हुए हैं। दिवाली केवल धन-समृद्धि और प्रकाश का पर्व नहीं, बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा को आमंत्रित करने का भी प्रतीक है। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि दिवाली पर माता लक्ष्मी की पूजा क्यों विशेष मानी जाती है, भगवान विष्णु की पूजा क्यों नहीं की जाती, और इस परंपरा का पौराणिक व सांस्कृतिक महत्व क्या है।
🪔 दिवाली के दिन क्यों नहीं होती है माता लक्ष्मी के साथ विष्णु जी की पूजा?
भारत के हर कोने में दिवाली का पर्व उल्लास के साथ मनाया जाता है। घर-घर दीप जलाए जाते हैं ताकि अंधकार दूर हो और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त हो। इस अवसर पर माता लक्ष्मी का स्वागत किया जाता है, जिन्हें धन, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि की देवी माना गया है। लेकिन एक रोचक तथ्य यह है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा प्रमुख रूप से नहीं की जाती। जबकि शास्त्रों के अनुसार माता लक्ष्मी भगवान विष्णु की अर्धांगिनी हैं और हर अवसर पर उनके साथ पूजी जाती हैं। आखिर ऐसा क्यों?
पौराणिक कारण
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समुद्र मंथन की कथा
शास्त्रों में वर्णन है कि समुद्र मंथन के समय माता लक्ष्मी प्रकट हुई थीं। उस दिन कार्तिक अमावस्या थी और उसी दिन से उनकी पूजा का महत्व माना जाता है। समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी के प्रकट होने के कारण यह दिन उन्हें समर्पित माना गया। -
विष्णु जी का शयन
कार्तिक मास में भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु शयन करते हैं। दिवाली इस अवधि में आती है, इसलिए उस दिन विष्णु जी की पूजा परंपरा में नहीं की जाती। -
राम-लक्ष्मण और अयोध्या वापसी
दिवाली को भगवान राम की अयोध्या वापसी से भी जोड़ा जाता है। रामजी के आगमन पर नगरवासियों ने दीप जलाए और माता लक्ष्मी का स्वागत किया। इस अवसर पर विष्णु जी की बजाय लक्ष्मी जी की पूजा परंपरा में आई।
धार्मिक दृष्टिकोण
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लक्ष्मी जी को गृहस्थ जीवन की सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। दिवाली पर घर-आंगन में उन्हें आमंत्रित करना और उनकी पूजा करना समृद्धि को बुलाने का माध्यम माना गया।
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विष्णु जी सृष्टि के पालनकर्ता हैं। उनका पूजन मुख्य रूप से वैष्णव परंपरा में या अन्य अवसरों पर किया जाता है, लेकिन दिवाली विशेष रूप से लक्ष्मी पूजन का पर्व है।
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शास्त्र कहते हैं कि इस दिन लक्ष्मी जी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और जो घर स्वच्छ, प्रकाशमय और भक्तिभाव से सजाया जाता है, वहाँ वे स्थायी रूप से निवास करती हैं।
सांस्कृतिक और सामाजिक कारण
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दिवाली का पर्व कृषि और व्यापार दोनों से जुड़ा है। पुराने समय में किसान नई फसल काटते थे और व्यापारी अपना नया लेखा-जोखा इसी दिन से आरंभ करते थे। लक्ष्मी जी को धन की देवी मानकर उनकी पूजा करना परंपरा बन गई।
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विष्णु जी की पूजा दिवाली के अवसर पर नहीं होने का कारण यह है कि यह पर्व अधिकतर आर्थिक, पारिवारिक और गृहस्थ सुख से जुड़ा है, जिसे लक्ष्मी जी ही प्रदान करती हैं।
शास्त्रीय संदर्भ
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पद्मपुराण और विष्णुपुराण में लक्ष्मी पूजन का महत्व विस्तार से बताया गया है।
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कार्तिक अमावस्या को लक्ष्मी जी का प्रिय दिन कहा गया है।
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शास्त्रों में उल्लेख है कि इस दिन केवल लक्ष्मी जी की पूजा करने से ही भगवान विष्णु अप्रत्यक्ष रूप से प्रसन्न होते हैं क्योंकि लक्ष्मी जी विष्णु प्रिय हैं।
दिवाली पर माता लक्ष्मी की पूजा का महत्व उनके समुद्र मंथन से प्रकट होने, कार्तिक अमावस्या से जुड़ाव और गृहस्थ जीवन में सुख-समृद्धि के प्रतीक होने के कारण है। विष्णु जी का शयनकाल होने से भी उनकी पूजा इस दिन परंपरागत रूप से नहीं की जाती। यद्यपि लक्ष्मी पूजन के साथ ही भगवान गणेश और कभी-कभी कुबेर की भी पूजा की जाती है।
इस परंपरा का मूल भाव यही है कि दिवाली धन, ऐश्वर्य और सकारात्मक ऊर्जा का स्वागत करने का पर्व है, जिसमें लक्ष्मी जी को मुख्य रूप से पूजित किया जाता है।
🙏 Disclaimer
यह लेख केवल सामान्य धार्मिक मान्यताओं, पौराणिक कथाओं और सांस्कृतिक परंपराओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल जानकारी प्रदान करना है। किसी भी धार्मिक क्रिया या अनुष्ठान के लिए अपने गुरु, पुरोहित या परिवार की परंपरा के अनुसार निर्णय लें।
सामान्य प्रश्न (FAQ)
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दिवाली पर किसकी पूजा की जाती है?
माता लक्ष्मी, भगवान गणेश और कभी-कभी कुबेर की पूजा की जाती है। -
विष्णु जी की पूजा दिवाली पर क्यों नहीं होती?
क्योंकि इस समय भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं। -
लक्ष्मी जी का जन्म कब हुआ था?
समुद्र मंथन के समय कार्तिक अमावस्या को। -
क्या विष्णु जी को लक्ष्मी पूजा में शामिल मान सकते हैं?
हाँ, लक्ष्मी जी की पूजा करने से विष्णु जी भी प्रसन्न माने जाते हैं। -
गृहस्थ लोग लक्ष्मी पूजा क्यों करते हैं?
घर में धन, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि के लिए। -
दिवाली पर गणेश जी की पूजा क्यों होती है?
हर शुभ कार्य में गणेश जी का पूजन अनिवार्य है। -
क्या व्यापारी लोग भी लक्ष्मी पूजन करते हैं?
हाँ, व्यापारी अपने नए खाता-बही की शुरुआत इसी दिन करते हैं। -
क्या विष्णु जी की पूजा साल के अन्य समय होती है?
हाँ, विशेषकर देवउठनी एकादशी, व्रत और अन्य पर्वों पर। -
क्या लक्ष्मी जी अकेली पूजी जाती हैं?
आमतौर पर गणेश जी के साथ। -
कुबेर की पूजा क्यों होती है?
कुबेर को धन का अधिपति माना जाता है। -
दिवाली पर घर क्यों सजाया जाता है?
माना जाता है कि स्वच्छ और रोशन घर में लक्ष्मी जी का आगमन होता है। -
लक्ष्मी जी किसका प्रतीक हैं?
धन, ऐश्वर्य, वैभव और समृद्धि का। -
विष्णु जी का शयन कब तक रहता है?
देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक। -
क्या हर घर में लक्ष्मी पूजन अनिवार्य है?
यह परंपरा और विश्वास पर आधारित है। -
लक्ष्मी पूजन का मुख्य संदेश क्या है?
जीवन में सुख-समृद्धि और प्रकाश लाना।
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