राम नाम की मधुर धुन में डूबकर जीवन की हर पीड़ा मिट जाती है। गोस्वामी तुलसीदास जी की अमर रचना 'श्री रामचंद्र कृपालु भजमन' भक्ति की ऐसी ज्योति है जो अंधेरे भवसागर को रोशन कर देती है। यह वंदना श्रीरामचरितमानस के बालकांड में शिव-पार्वती संवाद के आरंभ में आती है, जहां भगवान शिव अपनी अर्धांगिनी मां गौरी को राम के स्वरूप का वर्णन सुनाते हैं। प्रत्येक पंक्ति राम के करुणामय रूप, उनकी दिव्य शोभा और दीनबंधु स्वभाव को उकेरती है। नव कंज लोचन से लेकर आजानु भुज धारी योद्धा तक, यह वंदना राम को मन की कमल पर विराजमान करने का आह्वान है। भक्ति के इस मार्ग पर चलकर हम दैत्य वंश नाशक रघुनाथ के चरणों में शरण पाते हैं। यह न केवल राम कथा का प्रारंभ है, बल्कि हमारी आत्मा को शुद्ध करने वाला साधन भी। आधुनिक जीवन की भागदौड़ में यह वंदना शांति का संदेश देती है – राम भजो, भय हराओ। तुलसीदास जी की यह रचना हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति में रूप-रंग से परे हृदय की पुकार है। आइए, इसकी गहराई में उतरें और राम के प्रति समर्पण की भावना जगाएं।
श्री राम वंदना: एक आध्यात्मिक यात्रा का प्रारंभ
नमस्कार, राम भक्तों! आज हम गोस्वामी तुलसीदास जी की उस अमर रचना की गहराई में उतरेंगे, जो भक्ति की धारा को हमेशा के लिए बहा ले जाती है। 'श्री रामचंद्र कृपालु भजमन' – यह केवल एक वंदना नहीं, बल्कि राम स्वरूप की जीवंत चित्रकारी है। यह श्लोक श्रीरामचरितमानस के बालकांड में स्थित हैं, जहां भगवान शिव मां पार्वती को राम कथा सुनाने से पूर्व राम के गुणों का गुणगान करते हैं। बालकांड रामायण का प्रथम अध्याय है, जो राम जन्म से लेकर वनवास तक की घटनाओं को समेटे हुए है। इस वंदना का स्थान बालकांड के आरंभिक भाग में है, ठीक उसी क्षण जब शिव कहते हैं कि राम की महिमा अनंत है, और वे उन्हें भजने का आह्वान करते हैं।
यह वंदना क्यों महत्वपूर्ण है? क्योंकि यह राम को केवल अवतारी पुरुष के रूप में नहीं, बल्कि दैनिक जीवन के सहायक के रूप में प्रस्तुत करती है। तुलसीदास जी की भाषा सरल अवधी है, जो आम जन तक भक्ति पहुंचाती है।
आइए, प्रत्येक श्लोक का अर्थ सरल हिंदी में समझें, और देखें कि कैसे यह हमारे जीवन को स्पर्श करता है। हम इसे मानवीय भाव से व्याख्या करेंगे, जैसे कोई सखा आपको राम की कहानी सुना रहा हो।
॥दोहा॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन हरण भवभय दारुणं ॥
यह दोहा वंदना का प्रवेश द्वार है। 'श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन' – अर्थात्, हे श्री रामचंद्र! आप कृपालु (दयालु) हैं, हमें भजने की प्रेरणा दीजिए। 'हरण भवभय दारुणं' – आप भव (जन्म-मृत्यु के चक्र) के उस भयानक डर को हर लेते हैं, जो जीवन को नर्क जैसा बना देता है।
मानवीय दृष्टि से देखें तो यह दोहा हमारी आंतरिक व्यथा को छूता है। आज का इंसान भागदौड़ में डटा है – नौकरी का तनाव, पारिवारिक कलह, स्वास्थ्य की चिंता। यह भवभय ही तो है! तुलसीदास जी कहते हैं, राम का नाम जपो, बस। राम कृपालु हैं, अर्थात् वे क्षमा के सागर हैं। एक छोटे से भक्त की पुकार पर वे दौड़ पड़े, जैसे हनुमान जी लंका में सीता की खोज के लिए। इस दोहे से भक्ति का बीज बोया जाता है, जो पूरे रामचरितमानस को फलवंत बनाता है। बालकांड में यह इसलिए है क्योंकि राम कथा का आधार ही भक्ति है। शिव इसे पार्वती को सुनाते हैं, मानो कह रहे हों – प्रिये, राम भजना ही जीवन का सार है।
नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥
पहला चौपाई राम के शारीरिक सौंदर्य का वर्णन करता है। 'नव कंज लोचन' – आंखें नए कमल सी कोमल और आकर्षक। 'कंज मुख' – मुख कमल जैसा सुंदर। 'कर कंज पद कंजारुणं' – हाथ कमल के समान, चरण कमल के रंग के।
यह वर्णन केवल बाहरी रूप नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धता का प्रतीक है। कमल की तरह राम का स्वरूप कीचड़ (माया) में रहकर भी अपवित्र नहीं होता। कल्पना कीजिए, एक युवा राम को, जिनकी आंखें दया से भरी, मुस्कान शांति बरसाती। बालकांड में राम का बाल रूप यही सौंदर्य दर्शाता है। जीवन में यह हमें सिखाता है – बाहरी आकर्षण क्षणिक है, लेकिन राम जैसी शुद्धता स्थायी। जब हम राम भजन करें, तो अपनी आंखों में दया, मुख में सत्य और चरणों में धर्म रखें। तुलसीदास जी यहां राम को 'कंज' (कमल) से जोड़कर वैष्णव भक्ति की परंपरा को जीवंत करते हैं। यह श्लोक भक्त को राम दर्शन की कल्पना करने को प्रेरित करता है, जैसे कोई चित्रकार कैनवास पर दिव्य रेखाएं खींच रहा हो।
कन्दर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरं ॥
'कन्दर्प अगणित अमित छवि' – कामदेव के अनेकों से भी अधिक अनुपम सौंदर्य। 'नव नील नीरद सुन्दरं' – नए नीले मेघ के समान सुंदर।
राम का सौंदर्य यहां प्रकृति से जोड़ा गया है। नीला मेघ वर्षा लाता है, जो पृथ्वी को तरोताजा करता है। वैसे ही राम का रूप भक्तों के हृदय में आनंद की वर्षा करता है। कंदर्प (कामदेव) सांसारिक प्रेम का प्रतीक है, लेकिन राम का सौंदर्य उससे ऊपर है – दिव्य प्रेम का। बालकांड में यह वर्णन राम के विवाह पूर्व के रूप को चित्रित करता है। आधुनिक संदर्भ में, जब हम सौंदर्य के पीछे भागते हैं – फैशन, मेकअप – यह श्लोक याद दिलाता है कि सच्चा सौंदर्य अंतर्मन की शांति में है। तुलसी जी की यह कल्पना इतनी जीवंत है कि पढ़ते ही राम का रूप आंखों में उतर आता है, जैसे कोई सूर्योदय दृश्य।
पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि नोमि जनक सुतावरं ॥२॥
'पटपीत मानहुँ' – पीतांबर (पीला वस्त्र) धारण किए हुए। 'तडित रुचि शुचि' – बिजली सी चमकदार शुद्धता। 'नोमि जनक सुतावरं' – जनक की पुत्री (सीता) के पति को नमस्कार।
यहां राम को सीता वर के रूप में वर्णित किया गया है। पीतांबर विष्णु का प्रतीक है, जो शुद्धता और राजसी वैभव दर्शाता है। बिजली की चमक क्षणिक नहीं, बल्कि शाश्वत है। बालकांड में राम-सीता विवाह की ओर इशारा है। जीवन में यह संदेश देता है – विवाह केवल बंधन नहीं, बल्कि भक्ति का साथी है। सीता राम की अर्धांगिनी हैं, जैसे पार्वती शिव की। तुलसीदास जी यहां भक्त को नमस्कार सिखाते हैं – राम को नोमो, अर्थात् प्रणाम करो। यह श्लोक भक्ति को वैवाहिक जीवन से जोड़ता है, कहता है कि राम-सीता का आदर्श अपनाओ, तो जीवन सुंदर बनेगा।
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं ॥
'भजु दीनबन्धु' – दीनों के बंधु को भजो। 'दिनेश' – सूर्य के समान। 'दानव दैत्य वंश निकन्दनं' – राक्षसों के वंश का नाशक।
राम दीनबंधु हैं – गरीब, पीड़ित के रक्षक। सूर्य अंधकार मिटाता है, वैसे राम अधर्म। बालकांड में यह राम के अवतार उद्देश्य को रेखांकित करता है। आज के समाज में, जहां असमानता व्याप्त है, यह श्लोक हमें सामाजिक न्याय की प्रेरणा देता है। तुलसी जी कहते हैं, भजो – सक्रिय भक्ति करो, निष्क्रिय मत रहो। राम ने रावण वध से दैत्य वंश नष्ट किया, हम भी अपने आंतरिक राक्षसों (क्रोध, लोभ) का नाश करें। यह पंक्ति भक्त को योद्धा बनाती है।
रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥
'रघुनन्द' – रघु वंश का आनंद। 'आनन्द कन्द' – आनंद का मूल। 'कोशल चन्द' – कोसल के चंद्रमा। 'दशरथ नन्दनं' – राजा दशरथ के पुत्र।
राम रघु वंश की शोभा हैं, आनंद के स्रोत। चंद्रमा शीतलता देता है, वैसे राम शांति। बालकांड में दशरथ-पुत्र राम का परिचय है। यह हमें सिखाता है – कुल की शान परिवार की एकता से आती है। आनंद कंद बनो, दूसरों को खुशी दो। तुलसी की भाषा में यह पारिवारिक मूल्यों का उपदेश है।
शिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणं ॥
'शिर मुकुट' – सिर पर मुकुट। 'कुंडल तिलक' – कुंडल, तिलक। 'चारु उदारु अङ्ग विभूषणं' – सुंदर उदार अंगों के आभूषण।
राम का राजसी स्वरूप। मुकुट राजत्व, तिलक शुभता दर्शाता है। बालकांड में राम का युवा राजकुमार रूप। जीवन में यह कहता है – बाहरी आभूषण से अधिक आंतरिक गुण महत्वपूर्ण। तुलसी जी राम को आदर्श राजा बनाते हैं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥
'आजानु भुज' – घुटने तक लंबी भुजाएं। 'शर चाप धर' – धनुष-बाण धारण। 'संग्राम जित खरदूषणं' – खर-दूषण को संग्राम में हराने वाले।
राम योद्धा हैं। बालकांड में खर-दूषण वध की पूर्वसंकेत। यह शक्ति का संदेश – धर्म की रक्षा के लिए लड़ो। तुलसी यहां राम को शौर्य का प्रतीक बनाते हैं।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं ॥
'इति वदति तुलसीदास' – इस प्रकार तुलसीदास कहते हैं। 'शंकर शेष मुनि मन रंजनं' – शंकर, शेष, मुनियों के मन को आनंदित करने वाले।
तुलसी जी खुद को वक्ता बताते हैं। राम तीनों लोकों के प्रिय हैं। बालकांड का यह भाग शिव के वर्णन को समाप्त करता है।
मम् हृदय कंज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनं ॥५॥
'मम् हृदय कंज निवास कुरु' – मेरे हृदय कमल में निवास करो। 'कामादि खलदल गंजनं' – काम आदि दुष्टों का नाशक।
भक्त का आह्वान – राम, हृदय में बसो। यह भक्ति का चरम है।
मन जाहि राच्यो मिलहि सो वर सहज सुन्दर सांवरो ॥
'मन जाहि राच्यो' – जिस मन को रिझाया। 'मिलहि सो वर' – वह वर मिलेगा। 'सहज सुन्दर सांवरो' – स्वाभाविक सुंदर रंग वाले।
राम भक्ति से इच्छापूर्ति।
करुणा निधान सुजान शील स्नेह जानत रावरो ॥६॥
'करुणा निधान' – करुणा का भंडार। 'सुजान शील' – सुजन, सुशील। 'स्नेह जानत रावरो' – प्रेम जानने वाले।
राम की करुणा।
एहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हरषित अली ॥
गौरी का आशीर्वाद सीता को। 'तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥' तुलसी पार्वती की पूजा।
॥सोरठा॥ जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि ॥
गौरी का आशीर्वाद से सीता का हर्ष। 'मंजुल मंगल मूल वाम अङ्ग फरकन लगे।'
यह वंदना भक्ति, सौंदर्य, शौर्य का संगम है। तुलसीदास जी ने इसे बालकांड में रखकर राम कथा को पवित्र बनाया। जीवन में इसे अपनाकर हम भयमुक्त हो सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
श्री राम वंदना के श्लोक का अर्थ क्या है?
यह वंदना राम के दिव्य स्वरूप, गुणों और भक्ति के महत्व का वर्णन करती है, भवभय हराने का आह्वान है।
श्री रामचंद्र कृपालु भजमन किस कांड में है?
यह श्रीरामचरितमानस के बालकांड में स्थित है, शिव-पार्वती संवाद के आरंभ में।
इस वंदना के रचयिता कौन हैं?
गोस्वामी तुलसीदास जी।
दोहे 'हरण भवभय दारुणं' का सरल अर्थ क्या है?
राम भजो, जो भव के भयानक डर को दूर करते हैं।
क्यों राम को 'दीनबंधु' कहा गया है?
क्योंकि वे दीन-दुखियों के बंधु और रक्षक हैं।
इस वंदना में राम के सौंदर्य का वर्णन कैसे है?
कमल, मेघ, बिजली जैसे प्राकृतिक तत्वों से।
बालकांड में इसका स्थान क्यों महत्वपूर्ण है?
यह राम कथा का प्रारंभिक गुणगान है, भक्ति का आधार।
सीता का इसमें उल्लेख क्यों?
राम को जनकसुता वर के रूप में, विवाह का संकेत।
'कामादि खलदल गंजनं' का मतलब?
काम, क्रोध आदि बुराइयों का नाश।
यह वंदना दैनिक जीवन में कैसे उपयोगी?
भजन के रूप में जपने से शांति और भयमुक्ति मिलती है।
शिव का इसमें क्या भूमिका?
वे पार्वती को राम वर्णन सुनाते हैं।
सोरठा भाग का सार क्या?
गौरी के आशीर्वाद से सीता का हर्ष।
तुलसीदास ने इसे क्यों लिखा?
भक्ति प्रचार और राम स्वरूप की महिमा के लिए।
क्या यह भजन के रूप में गाया जाता है?
हां, लोकप्रिय भजन है, विभिन्न रागों में।
इसकी आध्यात्मिक शक्ति क्या?
हृदय शुद्धि, राम निवास और मोक्ष प्राप्ति।
क्रेडिट: यह सामग्री गोस्वामी तुलसीदास जी की मूल रचना 'श्रीरामचरितमानस' पर आधारित है। व्याख्या मूल भावना को बनाए रखते हुए मूल रूप से तैयार की गई है।
सामग्री स्रोत: श्रीरामचरितमानस (बालकांड), गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित। उपलब्ध संस्करण: गीता प्रेस, गोरखपुर।
डिस्क्लेमर: यह व्याख्या आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए है। मूल श्लोकों का अर्थ व्यक्तिगत भक्ति पर निर्भर करता है। किसी भी धार्मिक प्रथा के लिए विद्वान पंडित से परामर्श लें। यह सामग्री शैक्षिक उद्देश्य से है और किसी विवादास्पद दावे का समर्थन नहीं करती।
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