छठ पूजा, सूर्य उपासना का अनुपम पर्व है, जो बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और पूर्वी भारत के कोने-कोने में धूमधाम से मनाया जाता है। यह चार दिवसीय त्योहार कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से सप्तमी तक फैला होता है, जहां नदियों के तट पर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय अर्घ्य चढ़ाया जाता है। 2027 में यह पर्व 2 नवंबर से आरंभ होगा, जब नहाय खाय के साथ शुद्धता का संकल्प लिया जाएगा। अगले दिन खरना पर निर्जला व्रत रखकर प्रसाद ग्रहण किया जाएगा, फिर संध्या अर्घ्य में सूर्य देव को ठेकुआ, फल और दूध अर्घ्य समर्पित होगा। अंतिम दिन उषा अर्घ्य के साथ व्रत पारण होगा, जो परिवार की एकजुटता का प्रतीक है।
इस पर्व का महत्व असीम है, यह न केवल शारीरिक स्वास्थ्य प्रदान करता है, बल्कि मानसिक शांति और संतान सुख भी देता है। छठी माईया, जो शष्ठी देवी का रूप हैं, बच्चों की रक्षा करती हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से, यह सूर्य की किरणों से विटामिन डी प्राप्ति का माध्यम है, जो त्वचा और आंखों की रक्षा करता है। लोकगीतों की मधुर धुनें, डोभी परंपरा और प्रकृति के साथ सामंजस्य इस त्योहार को जीवंत बनाते हैं। आइए, इस छठ पर सूर्य की कृपा से जीवन को उज्ज्वल बनाएं।
छठ पूजा का परिचय: सूर्य देव की आराधना का महापर्व
भारतीय संस्कृति में त्योहारों की एक अनूठी परंपरा है, जो प्रकृति, देवता और मानव जीवन के बीच गहरा बंधन जोड़ती है। इन्हीं में से एक है छठ पूजा, जो सूर्य देव और छठी माईया की पूजा का प्रतीक है। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों और नेपाल में मनाया जाता है। छठ शब्द संस्कृत के 'षष्ठी' से लिया गया है, जो कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की छठी तिथि को संदर्भित करता है। यह दीपावली के छह दिन बाद आता है और चार दिनों तक चलता है।
छठ पूजा की खासियत यह है कि इसमें कोई मूर्ति पूजा नहीं होती। बल्कि, सूर्य की किरणों को ही अर्घ्य चढ़ाया जाता है सूर्यास्त के समय संध्या अर्घ्य और सूर्योदय के समय उषा अर्घ्य। यह व्रत महिलाओं द्वारा किया जाता है, जो परिवार की सुख-समृद्धि, संतान रक्षा और दीर्घायु के लिए समर्पित होता है। पुरुष भी सहयोग करते हैं, लेकिन मुख्य व्रती महिलाएं होती हैं। इस पर्व में शाकाहारी भोजन, शुद्धता और पर्यावरण संरक्षण का संदेश निहित है। नदियों या तालाबों के किनारे डोभी (बांस की छतरी) बनाकर पूजा की जाती है, जो सामूहिक एकता का प्रतीक है।
2027 में छठ पूजा विशेष महत्व रखेगा, क्योंकि यह गुरुवार से शुरू होकर शुक्रवार को समाप्त होगा, जो शुभ माने जाते हैं। इस वर्ष की तिथियां इस प्रकार हैं: नहाय खाय—2 नवंबर 2027 (मंगलवार), खरना 3 नवंबर 2027 (बुधवार), संध्या अर्घ्य 4 नवंबर 2027 (गुरुवार), उषा अर्घ्य—5 नवंबर 2027 (शुक्रवार)। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय नई दिल्ली के अनुसार क्रमशः 6:35 बजे सुबह और 5:34 बजे शाम हैं। इन तिथियों पर पंचांग अनुसार शुभ मुहूर्त का पालन करें।
छठ पूजा 2027 की तिथियां और शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, छठ पूजा की सटीक तिथियां निम्नलिखित हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की कलाएं बढ़ रही होती हैं, जो सकारात्मक ऊर्जा का संकेत देती हैं।
- नहाय खाय (प्रथम दिन): 2 नवंबर 2027, कार्तिक शुक्ल चतुर्थी। इस दिन सुबह स्नान के बाद एक समय का शाकाहारी भोजन किया जाता है। मुहूर्त: सूर्योदय से दोपहर 12 बजे तक।
- खरना (द्वितीय दिन): 3 नवंबर 2027, कार्तिक शुक्ल पंचमी। निर्जला व्रत रखा जाता है। शाम को गुड़ की खीर और फल प्रसाद ग्रहण करें। मुहूर्त: सूर्यास्त के बाद 7 बजे से रात्रि 9 बजे तक।
- संध्या अर्घ्य (तृतीय दिन): 4 नवंबर 2027, कार्तिक शुक्ल षष्ठी। मुख्य पूजा का दिन। अर्घ्य मुहूर्त: सूर्यास्त 5:34 बजे से 6:30 बजे तक।
- उषा अर्घ्य (चतुर्थ दिन): 5 नवंबर 2027, कार्तिक शुक्ल सप्तमी। भोर में अर्घ्य। मुहूर्त: सूर्योदय 6:35 बजे से 7:15 बजे तक। उसके बाद पारण।
ये मुहूर्त स्थानीय पंचांग पर निर्भर करते हैं, इसलिए नजदीकी मंदिर या ज्योतिषी से सत्यापित करें। इस वर्ष सूर्य का गोचर मकर राशि में होने से स्वास्थ्य लाभ विशेष होगा।
छठ पूजा का महत्व और पौराणिक कथा
छठ पूजा का महत्व वैदिक काल से जुड़ा है। वेदों में सूर्य को विश्व का आत्मा कहा गया है, जो रोग नाशक और जीवन दाता है। यह पर्व सूर्य की सात किरणों सर्प, हरित, उडु, विवर्ण, विष्णु, गो और भानु की आराधना करता है। छठी माईया, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं, संतान की रक्षा करती हैं। पुराणों में इन्हें कात्यायनी माता के रूप में वर्णित किया गया है।
पौराणिक कथा के अनुसार, स्वयंभू मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत को संतान सुख नहीं था। महर्षि कश्यप के यज्ञ से मां शष्ठी प्रकट हुईं। उन्होंने मृत पुत्र को जीवित कर दिया और कहा, "मेरी पूजा से सभी को सुख मिलेगा।" तब से कार्तिक शुक्ल षष्ठी को शष्ठी व्रत मनाया जाता है। एक अन्य कथा में द्रौपदी ने पांडवों की रक्षा के लिए यह व्रत किया।
आधुनिक संदर्भ में, यह पर्व पर्यावरण संरक्षण सिखाता है, नदियों की सफाई और प्लास्टिक मुक्त पूजा। महिलाओं को सशक्त बनाता है, क्योंकि व्रत की कठिनाई सहन करने वाली वे ही होती हैं। सूर्य पूजा से विटामिन डी मिलता है, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है।
दिवसानुसार पूजा विधि: चरणबद्ध मार्गदर्शन
नहाय खाय की विधि: सुबह गंगा या नदी में स्नान करें। घर साफ करें। एक समय का भोजन, चावल, दाल, सब्जी ग्रहण करें। संकल्प लें: "मैं छठ व्रत रखूंगी।" सामग्री: सुप, डोरा, ठेकुआ।
खरना की विधि: निर्जला व्रत। शाम को चूल्हे पर गुड़ की खीर बनाएं। पांच प्रकार के फल और पूरी प्रसाद के रूप में लें। व्रत कथा सुनें।
संध्या अर्घ्य की विधि: बांस की टोकरी में फल, ठेकुआ, चावल के लड्डू रखें। घुटने तक पानी में खड़े होकर सूर्य को जल, दूध अर्घ्य चढ़ाएं। दीपक जलाएं। रात्रि में लोकगीत गाएं। सामग्री: नारियल, गन्ना, अदरक, शहद, हल्दी।
उषा अर्घ्य की विधि: भोर में नदी किनारे जाएं। सूर्योदय पर अर्घ्य दें। छठी माईया से संतान रक्षा की प्रार्थना करें। पारण: शरबत, दूध और प्रसाद से।
पूजा में शुद्ध वस्त्र पहनें, तांबे का लोटा इस्तेमाल करें।
प्रसाद की रेसिपी: स्वाद और भक्ति का संगम
छठ प्रसाद बिना मसाले के शुद्ध होता है। ठेकुआ: गेहूं का आटा, गुड़, घी से गूंथकर तेल में तलें। मालपुआ: आटे में केसर दूध मिलाकर बनाएं। खीर: चावल, गुड़, इलायची से। चावल के लड्डू: उबले चावल को पीसकर गुड़ से बांधें। फल: केला, सेब, नारियल। ये प्रसाद ऊर्जा प्रदान करते हैं। महिलाएं रात्रि जागरण में इन्हें तैयार करती हैं, जो पारिवारिक बंधन मजबूत करता है।
छठ के लोकगीत और सांस्कृतिक महत्व
छठ पूजा में लोकगीतों का विशेष स्थान है। "हो चलेसा के चढ़ जइहैं..." जैसे भक्ति गीत माईया की स्तुति करते हैं। ये गीत पीढ़ियों से चले आ रहे हैं, जो दर्द, आशा और भक्ति व्यक्त करते हैं। सांस्कृतिक रूप से, यह पर्व ग्रामीण जीवन को दर्शाता है डोभी, सूप और प्रकृति। महिलाओं की मेहनत को सम्मान देता है। आधुनिक समय में शहरों में भी सामूहिक पूजा होती है, जो सांस्कृतिक एकीकरण का प्रतीक है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और स्वास्थ्य लाभ
कार्तिक मास में सूर्य दक्षिणायन में होता है, जब पराबैंगनी किरणें तीव्र होती हैं। अर्घ्य से आंखें मजबूत होती हैं। व्रत से detoxification होता है। शाकाहारी प्रसाद पाचन सुधारता है। यह पर्व मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है, क्योंकि सामूहिकता तनाव कम करती है।
छठ की कृपा से उज्ज्वल जीवन
छठ पूजा सूर्य की ऊर्जा से जीवन को रोशन करती है। 2027 में इस पर्व को हर्षोल्लास से मनाएं, शुद्धता अपनाएं। परिवार के साथ मिलकर यह व्रत करें, तो सुख की प्राप्ति निश्चित है। जय छठी माईया! जय सूर्य देव!
Disclaimer: यह लेख सूचनात्मक उद्देश्य से तैयार किया गया है। ज्योतिषीय या धार्मिक सलाह के लिए योग्य पंडित या ज्योतिषी से परामर्श लें। तिथियां स्थानीय पंचांग पर निर्भर करती हैं, जो स्थान के अनुसार भिन्न हो सकती हैं। lordkart या लेखक किसी भी स्वास्थ्य/धार्मिक निर्णय की जिम्मेदारी नहीं लेते।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
छठ पूजा 2027 कब मनाई जाएगी?
2 नवंबर से 5 नवंबर 2027 तक, नहाय खाय से उषा अर्घ्य तक।
क्या छठ व्रत केवल महिलाएं रखती हैं?
मुख्यतः महिलाएं, लेकिन पुरुष सहयोग करते हैं।
छठ प्रसाद में क्या-क्या बनता है?
ठेकुआ, मालपुआ, गुड़ की खीर, चावल के लड्डू और मौसमी फल।
संध्या अर्घ्य का सही समय क्या है?
4 नवंबर 2027 को सूर्यास्त 5:34 बजे से 6:30 बजे तक।
क्या गर्भवती महिलाएं छठ व्रत रख सकती हैं?
हल्का व्रत रख सकती हैं, लेकिन डॉक्टर की सलाह लें।
छठ पूजा में कौन से फल चढ़ाए जाते हैं?
केला, सेब, नारियल, गन्ना, अदरक और साइट्रस फल।
उषा अर्घ्य क्यों महत्वपूर्ण है?
यह व्रत का समापन है, संतान सुख की प्रार्थना के लिए।
छठ के लोकगीत क्यों गाए जाते हैं?
भक्ति बढ़ाने और परंपरा जीवित रखने के लिए।
क्या छठ पूजा में मांसाहार की मनाही है?
हां, पूरे चार दिनों में शाकाहारी भोजन ही।
छठी माईया कौन हैं?
शष्ठी देवी, संतान रक्षा की देवी।
व्रत में पानी पी सकते हैं?
खरना पर निर्जला, अन्य दिनों में हल्का।
छठ पूजा का वैज्ञानिक महत्व क्या है?
सूर्य किरणों से विटामिन डी प्राप्ति और detoxification।
क्या शहरों में छठ मनाई जाती है?
हां, पार्कों या तालाबों में सामूहिक रूप से।
पारण कब और कैसे करें?
5 नवंबर को सूर्योदय के बाद शरबत और प्रसाद से।
छठ पूजा की कथा क्या है?
राजा प्रियव्रत की संतान प्राप्ति की कथा, ब्रह्म वैवर्त पुराण से।
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