शिव वह चेतना है जहाँ से सब कुछ आरम्भ होता है, जहाँ सबका पोषण होता है और जिसमें सब कुछ विलीन हो जाता है| आप कभी 'शिव' के बाहर नहीं हैं क्योंकि पूरी सृष्टि ही शिव में विद्यमान है| आपका मन, शरीर सब कुछ केवल शिव तत्व से ही बना हुआ है, इसीलिए शिव को 'विश्वरूप' कहते हैं जिसका अर्थ है कि सारी सृष्टि उन्हीं का रूप है|
शिव समस्त ब्रह्माण्ड हैं|
शिव का कोई आदि और अंत नही है| अंत में वे दोनों मध्य में मिले और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि वे शिव को नहीं ढूंढ सकते| यहीं से शिवलिंग अस्तित्व में आया| शिवलिंग अनंत शिव की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है|
शिव शाश्वत है
सृष्टि विपरीत मूल्यों का संगम है| इसमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही गुण मौजूद हैं| ब्रह्माण्ड में अग्नि है तो जल भी है; बुराई है तो अच्छाई भी है| शिव सभी विपरीत मूल्यों में विद्यमान हैं| इसीलिए शिव को रूद्र (उग्र) कहते हैं और साथ ही वे भोलेनाथ भी कहे जाते हैं
शिव समस्त जगत की सीमा है
शिव, चेतना की जागृत, निद्रा और स्वप्न अवस्था के परे हैं| शिव समाधि हैं - चेतना की चौथी अवस्था, जिसे केवल ध्यान में ही प्राप्त किया जा सकता है| समाधि में मन पूरी तरह समभाव में रहता है| यह एक ही समय में शांत भी है और पूरी तरह जागरूक भी|
शिव समाधि है
शिव, चेतना की जागृत, निद्रा और स्वप्न अवस्था के परे हैं| शिव समाधि हैं - चेतना की चौथी अवस्था, जिसे केवल ध्यान में ही प्राप्त किया जा सकता है| समाधि में मन पूरी तरह समभाव में रहता है| यह एक ही समय में शांत भी है और पूरी तरह जागरूक भी|
शिव समाधि है
यह परमात्मा हैं, यह सर्वशक्तिमान हैं, यह सर्वविद्यमान हैं| ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ शिव न हों| यह वह आकाश हैं; वह चेतना है, जहाँ सारा ज्ञान विद्यमान है| वे अजन्मे हैं और निर्गुण हैं| यह समाधि की वह अवस्था है जहाँ कुछ भी नहीं है, केवल भीतरी चेतना का खाली आकाश है| वही शिव हैं!
रूद्राष्टकम- एक शिव स्तोत्र में उत्तर है